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Krishna Khatri

Others

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Krishna Khatri

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गूंज रही है !

गूंज रही है !

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बाबा ,,,,,

जब भी देखती हूं वो तस्वीर 

जो दिवाली पर खिंचवाई थी,

हम सबने मिलकर 

तब कितनी छोटी थी मैं, 

कितना झगड़ा हुआ था

मुझमें और प्रभा में 

तुम्हारी गोद में बैठने के लिए, 

तुमने कितनी मुश्किल से 

लेकिन बड़े प्यार से 

फुसलाकर बिठाया था, 

अपने दाएं-बाएं 

और हम दोनों के हाथों को, 

थामे रखा था गोदी में अपनी 

आज मगर लगता है

मुझको ऐसा,

मैं बैठी हूं तुम्हारी गोदी में,

प्रभा हटा रही है मुझको 

मैं धक्का दे रही हूं उसको 

तुम हंस रहे हो हमपे, 

तुम्हारी हंसी की खनक में 

गूंज रही है ,,,,,,,,,

आज मेरी भी वो हंसी ! 

         



        


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