गुरु पूर्णिमा
गुरु पूर्णिमा


धूमिल सी हो परिस्थितियां,
हालात जब हमें भटकाए,
नई राह दिखा कर,
हमारे सारे संशय को मिटाता है,
वो गुरु ही है जो हमें ,
दण्ड और प्रेम दोनों रूप दिखाता है।
बड़ी हो हमारी गलतियां,
बुराई में फंसे हो हम कहीं,
सद्गुणों को पहचान कर,
हमारे कल्पित रूप को निखारता है,
वो गुरु ही है जो हमें,
असफलता से बिना डरे सफलता
हासिल करना सिखाता है।
उलझी हुई हो जब पहेलियां,
और हो जाए हम से कोई गड़बड़,
नई उत्साह जगाकर,
हमारी उलझन को सुलझाता
है,
वो गुरु ही है जो हमें,
हमारा नया भविष्य दिखाता है।
अज्ञानता के इस सागर में,
ज्ञान की बूंद सा है वो,
किसी भी देश को समृद्धि में,
सोने की खान सा है वो,
हर गम हर दुख में ,
नए जोश नई उमंग सा है वो।