गुमनाम खत
गुमनाम खत
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एहसास लपेट के स्याही में, खत में उन्हें समेट लिया
उसे सामने आता देख, पीठ के पीछे भींच लिया,
देने की हिम्मत ना हुई, ठुकराए जाने के डर से
बेताब लबों पे खामोशी का, पर्दा मैंने ओढ़ लिया,
ताज़ा हैं एहसास अभी भी, उस खत में, सूखी स्याही में,
एक अंजाने डर से जिनको, मैंने महकने नहीं दिया I
