"गर्मी का पल "
"गर्मी का पल "
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गर्मी का यह पल,
धरती की यह जलन।
कर रही है प्रकृति को इधर-उधर।।
सूर्य की खुशी का ठिकाना ना पूछो,
शांत है पेड़ भीl
वायु से इसका अफसाना ना पूछो।।
आज कुछ ऐसी,
जैसे रेगिस्तान का रेत।
गर्मी कुछ ऐसी,
जैसे लाल हो रंग सफेद।।
पक्षियों की मुश्किलें अब बढ़ने लगी।
पल-पल पानी को अब उनकी जीभ तरसने लगी।।
सूर्य की किरणें कुछ यूं लाल होने लगी,
बरस रही हो जैसे धूप की बारिश।
आग ऐसे अब बरसने लगी।।
फ्रिज की जरूरत हद से ज्यादा होने लगी,
एसी और पंखों की बात अब आम होने लगी।
