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सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता "

Others

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सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता "

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गरीबी और फैशन

गरीबी और फैशन

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दूर से देखो तो फैशन

और गरीबी दिखते नहीं

करीब से देखो तो फैशन

वाले गरीब जंचते नहीं।


सर्दी की एक सुबह, 

देखा दो युवतियों को. 

दोनों की काया थी अर्धनग्न. 

एक के हाथ तसला, 

दूसरी मोबाइल में मगन।


एक गरीबी से लाचार थी, 

दूसरी फैशन से. 

एक के पास कपडे नहीं, 

और दूसरी को शौक नहीं।


गर्म मौसम में कड़कती

गर्मी छायी हुई थी

एक मेहनत के पसीने से, 

दूसरी शैम्पू से नहायी हुई थी. 


एक के हाथ में हथौड़ा, 

दूसरी ने अपना बैग ना छोड़ा. 

एक गरीबी की सतायी हुई, 

दूसरी कॉलेज से आयी हुई।


एक की गरीबी मज़बूरी थी, 

दूसरी आधुनिक पूरी थी. 

काश ऐसा ना होता "उड़ता ", 

फासलों की ये दीवार कहाँ जरुरी थी।


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