गिरते बूंदों की खामोशी...
गिरते बूंदों की खामोशी...
गिरते बूंदों की खामोशी ,
अक्सर दिल में उतरती है ,
आसमान से झुककर ,
जमीन पर उतरती है...
इस कदर बरसती है ,
मानो टूटकर बिखरी है,
सिमट के फिर दरिया दरिया,
नदी समंदर बनती है...
प्यार मेरा भी कुछ ऐसा ही है,
कभी बरसू तो जान लेती है,
यूं सिमट के जम गया हूं दिल में,
यूं तो आसमान में गरजते बादल है ...
जब एक फुहार आती है,
सौंधी खुशबू फैलाती है,
ये तेरी ही आहट है,
खुशनुमा दिल को बनाती है ...
गिरते बूंदों की खामोशी ,
अक्सर दिल में उतरती है ,
आसमान से झुककर ,
जमीन पर उतरती है...