गीता छंद...
गीता छंद...
संकल्प नित नव धारणा ,हर पल करें कल्याण ।
पर हित सदा सुख साथ दे,निश्चय मिले निर्वाण ।।
आज्ञा सहित प्रज्ञा सदा,करती सदा प्रयाण ।
जो जन रखे दुर्भावना ,मानव नहीं पाषाण ।।
दुख दर्द में उपकार का,सब लोग हों शौकीन।
बस प्रेम से जीवन मिला,है भाव यह प्राचीन ।।
मृत प्रीत से हो सर्वदा,अपराध भी संगीन ।
सत धर्म से संभाव्यता,हो जीत नित शालीन ।।
हों भाव आज्ञाकारिता,मिलते नित्य आशीष ।
बिन प्रेम के क्या जिंदगी,चौपद तजे कारीष ।।
आओ करें हम प्रार्थना,प्रभु से बना तन जान ।
हर मन बसे सद्भावना,सुख शान्ति अरु सम्मान ।।
