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गुलशन खम्हारी प्रद्युम्न

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गुलशन खम्हारी प्रद्युम्न

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गीता छंद...

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संकल्प नित नव धारणा ,हर पल करें कल्याण ।

पर हित सदा सुख साथ दे,निश्चय मिले निर्वाण ।।

आज्ञा सहित प्रज्ञा सदा,करती सदा प्रयाण ।

जो जन रखे दुर्भावना ,मानव नहीं पाषाण ।।


दुख दर्द में उपकार का,सब लोग हों शौकीन।

बस प्रेम से जीवन मिला,है भाव यह प्राचीन ।।

मृत प्रीत से हो सर्वदा,अपराध भी संगीन ।

सत धर्म से संभाव्यता,हो जीत नित शालीन ।।


हों भाव आज्ञाकारिता,मिलते नित्य आशीष ।

बिन प्रेम के क्या जिंदगी,चौपद तजे कारीष ।।

आओ करें हम प्रार्थना,प्रभु से बना तन जान ।

हर मन बसे सद्भावना,सुख शान्ति अरु सम्मान ।।



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