घाटी का बसंत
घाटी का बसंत
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बसंत ऋतु आई है ,
हर रँग पर रौनक छाई है ,
बस एक रँग है ऐसा जिससे ,
हर दिल में उदासी छाई है।
वो रँग है नफरत का ,
वो रँग लहू का लाल ,
जिस रँग से घबराते हैं ,
भारतवासी हर साल।
हमारे सैनिक बन्दूकें थामे ,
रक्षा करते सीना ताने ,
हर ऋतु उनके लिए समान ,
करो उनका सब सम्मान।
वो खिलने देते वहाँ फुलवारी ,
जब भी होती गोलाबारी ,
तभी बसंत वहाँ आ पाता ,
जो लाल रँग को पीले में बदल जाता।
असली बसंत ऋतु का आगमन ,
घाटी में जाकर देखो ,
जहाँ नफरत की होली जलती ,
और बसंत ऋतु की लड़ियाँ खिलती।
