गांव की गली
गांव की गली
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ना भूले हम अपने गांव की गली,
याद है अब भी वो जानवर जंगली।
जब गायो की पूरी टोली ,
पूरे गांव में रोज़ डोलती।
लिए लकुटी हाथ में ,
दौड़े चरवाहा साथ मे।
बारिश में मोर नाचता छम छम छम,
देखें उसका नाच होकर हम मगन।
अद्भुत थे वोह खेत खलियान के नज़ारे,
रोज़ नहाते हम बम्बे के एक किनारे।
खेल कूद और मोज़ मस्ती
करी हमने दोस्तो के साथ अनेक कुश्ती,
सदैव जान हमारी गांव में बसती।
बड़ा अच्छा लगता था हमे खेत जोतना,
अब कहाँ रह गया जिंदगी मे मज़ा उतना।
