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Saksham Sarode

Others

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Saksham Sarode

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फ़ासले

फ़ासले

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जाड़ों की रातों में सिहरते जिस्म

हथेलियाँ रगड़ते, कपकपाते जिस्म

पहले अगीठी से एकदम सट जाते है

फिर थोड़ा सरक कर वहाँ बैठ जाते हैं

जहाँ सेंक तो पहुंचे मगर आंच नहीं


जाड़ों की रातों में हम आग नहीं तापते

हम तापते हैं उस आग से हमारा फासला


वो बंजर मिट्टी का ढेर खूबसूरत नहीं है

खूबसूरत है उस चाँद से हमारा फ़ासला


ये नहीं के नज़दीकी दिलकश नहीं होती

बस उस कशिश की उम्र लंबी नहीं होती


दूर से दिखते हैं महज आकार और आकृती

करीब से समझ आते हैं विकार और विकृती


फासले दिखाते हैं जो हम देखना चाहते हैं

जब की नजदीकियाँ हमें दिखाती हैं वो जो हैं


इसीलिए खूबसूरती फ़ासलों से होती हैं

या यूँ कहिये के फ़ासले ही खूबसूरत होते हैं


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