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Minal Aggarwal

Others

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Minal Aggarwal

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एक नई नवेली दुल्हन के श्रृंगार से सुंदर

एक नई नवेली दुल्हन के श्रृंगार से सुंदर

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कभी गौर से देखा है 

नहीं देखा होगा 

देखना कभी 

सूर्योदय और सूर्यास्त 

यह दोनों समय अलग होने पर भी 

दिखने में 

एक से दिखते हैं 

एक सुबह है 

दूजी शाम 

एक आरंभ है 

दूसरा अंत पर 

दोनों सुंदर हैं 

एक नई नवेली दुल्हन के श्रृंगार से 

सुंदर हैं

सुबह एक नई नवेली दुल्हन 

सोलह श्रृंगार किए 

घर की देहरी से 

घर के भीतर प्रवेश करती है 

और 

घर के प्रत्येक कोने को 

अपनी रूप की आभा से 

सुशोभित करती है 

सांझ को वह निकलती है 

घर के दरवाजे से बाहर 

कहती है 

सांकल लगा लो 

जरा देर कहीं टहल कर आती हूं 

और 

चली जाती है कहीं 

ढल जाती है अपने 

अमिट रंग की एक 

नारंगी लकीर सी छोड़ती 

पहाड़ी से उतरती ढलान पर कहीं 

घुप रात के अंधियारे में कभी 

चांद सी तो 

कभी एक सितारे सी

टिमटिमाती है 

अगली सुबह फिर उतर 

आती है 

घर की छत की सीढ़ियों से 

घर के आंगन तक 

रात भर शायद घर की खिड़की 

के बाहर ही कहीं टंगी रहती है 

एक दिल के आसमान के आले में 

जल रहे प्यार के दीपक की तरह ही 

कहीं।


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