एक दर्द उभरता रहता है
एक दर्द उभरता रहता है
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एक दर्द उभरता रहता है, एक ख्वाब संवरता रहता है ॥
यही एक कहानी सदियों से,किरदार बदलता रहता है ।
सबका अपना है चांद मगर, कहीं दूर चमकता रहता है।
इसने कब हार कोई मानी, मन है ये, मचलता रहता है ।
अपनों पर जब आया गुस्सा, पानी सा उबलता रहता है।
कोई और बढ़ गया आगे तो, खुद को भी अखरता रहता है ।
कमजोर है जो, औरों पर वही, दिन-रात गरजता रहता है।
