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SHREYANSH KUMAR

Others

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SHREYANSH KUMAR

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एक दर्द उभरता रहता है

एक दर्द उभरता रहता है

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एक दर्द उभरता रहता है, एक ख्वाब संवरता रहता है ॥

यही एक कहानी सदियों से,किरदार बदलता रहता है ।

सबका अपना है चांद मगर, कहीं दूर चमकता रहता है।

इसने कब हार कोई मानी, मन है ये, मचलता रहता है ।

अपनों पर जब आया गुस्सा, पानी सा उबलता रहता है।

कोई और बढ़ गया आगे तो, खुद को भी अखरता रहता है ।

कमजोर है जो, औरों पर वही, दिन-रात गरजता रहता है।


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