“एबॉर्शन”
“एबॉर्शन”
हे माँ...., बोल ना माँ ,
कुछ पूछती हूँ तुमसे
तू जानती है ना ,
मैं आज पूरे "26 " हफ्ते की हो गई हूँ
और अब मैं मुस्कुराती भी हूँ माँ
सुन सकती हूँ तुझे मैं
और वो सारी बातें
है ना माँ ?
तेरी कोख में माँ
मैं सुखी हूँ I
आज तू उदास क्यूँ है माँ ..
वो पापा क्या बोल रहे थे ?
गुस्से में इतने
क्यूँ आपा खो रहे थे ?
तू क्यूँ थम सी गई है माँ.....
अच्छा !
सारा दिन काम करते ,
और हाँ मुझे अपनी कोख में ढोते - ढोते ,
शायद थक गई है ना ?
रात बहुत हुई
तू सोजा माँ,
मैं भी भीतर हाथ - पांव चलाते – चलाते,
थक- सी गई हूँ माँ….
मैं भी अब सोती हूँ I
अगली सुबह मैं जागी ,
शायद थी अभागी ?
माँ ..ये कहाँ ले आई मुझे ?
वो अपने घर की खुशबु तो नहीं यहाँ ,
वो मंदिर की घंटी और पूजा की आवाज भी
है कहाँ ?
जो दादी हमेशा करती हैं,
न जाने क्या मांगती हैं ?
भगवान से सारा दिन I
यहाँ आवाज़ें भी अजीब सी हैं,
कुछ चीखें आ रही मेरे करीब से हैं I
माँ ... तू बोल न माँ,
ये कहाँ ले आई मुझे ?
तूने बताया भी नहीं ।
ये क्या माँ
ये कुछ लोग ,
तुझे तेजी से कहाँ लिए जा रहे हैं
थामों इन्हें ,
मुझे चक्कर आ रहे हैं माँ ।
ये तुम्हारे पेट पर क्या हाथ जैसा चल रहा है ?
ये मुझे डरा रहा है माँ ..
माँ मुझे घबराहट हो रही है माँ ..
तू चुप क्यों है माँ ,
बोल न कुछ तो बोल।
ये पापा किस से बात कर रहे हैं ?
ये डॉक्टर क्या बोल रहे हैं ?
ये हस्पताल क्या हैं माँ ?
और मुझे यहाँ क्यों लाये हो माँ तुम ?
तुम तो कहती थी न !
कि मैं तुम्हारी दुलारी बेटी हूँ.....
और तुम तो अपने मन की सारी बातें
मुझसे अकेले में बांटती थी न ,
ये आज क्या हुआ माँ ?
तुम्हारी चुप्पी मुझे डरा रही है ।
तुम्हारा हाथ भी आज खामोश है ,
वो जो रोज़ सुबह उठते ही
मुझे प्यार से सहलाती थी तुम ।
ये क्या माँ ?
तुम्हारी साँसे धीमीं क्यों हो रही है माँ ?
तुम्हारे साथ ही तो मेरा जीवन है माँ....
मैं मर जाउंगी ,ऐसे मत करो माँ... I
ओह !
ये लोग तुम्हे क्यों लेटा रहे हैं ?
तुम अभी के अभी घर चलो माँ....
अगर थक गई हो तो...
वहीँ आराम करो माँ...
अपने घर…I
माँ.. ये एबॉर्शन क्या है माँ ?
ये लोग बार - बार यही शब्द
दोहरा रहे हैं,
माँ तुम्हें मेरी कसम ..
बताओ मुझे...
कहीं ये लोग मुझे मार तो नहीं डालेंगे ?
नहीं माँ...
मैं मरना नहीं चाहती,
मैं भी तुम्हारी तरह इस दुनिया में
जीना चाहती हूँ माँ.... I
क्या तुम्हारे साथ भी यही हुआ था ?
जो मेरे साथ हो रहा है माँ....
नहीं माँ , मुझे तो अब शक हो रहा है
तुझ पर भी,
जो मैं नहीं चाहती !
क्योंकि तुम तो एक माँ हो,
और एक स्त्री भी ,
फिर मेरी इस पीड़ा को क्या तुम समझ नहीं सकती !
मैंने घर में कई बार पापा को कहते सुना है,
कि उन्हें इस बार बेटा चाहिए !
माँ ..क्या ये सही बात है ?
नहीं !
यहाँ कैसे हो सकता है माँ ?
तू कैसे कर सकती है ये ?
मैं तो तेरे शरीर का एक दुकड़ा हूँ माँ।
या फिर लड़के हम लड़कियों से ज्यादा
कीमती हैं क्या ?
हमारी जान क्या जान नहीं ?
इस समाज के लिए !
नहीं माँ ,
ये मैं नहीं मानती,
तू अगर चाहे मुझे मरने से बचा सकती है,
है न माँ !
माँ .. बोल न माँ !
अब ये तेरी ख़ामोशी मेरी क्या जान लेकर ही रहेगी ?
नहीं, मेरी माँ इतनी तो कमज़ोर नहीं हो सकती I
माँ.. मैं भी एक लड़के की तरह,
आपकी और पापा की देख - भाल कर सकती हूँ ,
मैं भी एक ज़िम्मेदार इंसान बन सकती हूँ ,
बस एक बार पापा को कह दो माँ...
कि तुम्हारी बेटी जीना चाहती है।
तू सुन रही हैं न माँ ?
हाँ तू सुन रही है...
तेरे ये आँसू गले से होते हुए ,
तेरे पेट पर मुझे गीलेपन का अहसास
करवा रहे हैं I
माँ ! बस माँ ,
अब बहुत रो चुकी,
तुझे तेरी बेटी के लिए इस समाज से
लड़ना ही पड़ेगा I
वरना हम बेटियां यूँ ही मारी जाएँगी
फिर कौन पैदा होना चाहेगा यहाँ ?
और भगवान को क्या मालूम नहीं ?
की मेरे पापा को सिर्फ
और सिर्फ बेटा चाहिए !
तो फिर मुझे आपकी कोख
में क्यूँ भेजा ?
अगर मुझे मरना ही था,
तो फिर क्या भगवान भी
मिल गए हैं पापा से ?
नहीं माँ,
मुझे तुम्हारी कोई बात नहीं सुननी,
और तुम भी हिम्मत करो !
भगवान से लड़ जाओ,
अपनी प्यारी सी बेटी के लिए I
इतना तो कर ही सकती हो न माँ !
माँ , मैं अब बहुत बोल चुकी !
अब तुम बोलो माँ…
उठो माँ….
उठो !
आखिर ! कब तक हम लडकियां समाज की
इच्छा और अनिच्छा का शिकार
होती रहेंगी I
सब कुछ तो हम बेटियों से ही होता है।
ये परिवार,
ये वंश,
ये सब कौन चलाता ?
कौन सृजन करता है इस सृष्टि का ?
हम लडकियां ही तो हैं I
बेटी , बहन , बहु , माँ , सास ….और न जाने कितने ही रिश्तों की डोर
बंधी है हम से I
उठो माँ ,उठो !
जागो माँ , जागो !
अपनी इस बेटी के लिए,
अगर आज आप खुद से नहीं लड़ोगी,
फिर यूँ हीं हम बेक़सूर मारी जाएँगी I
माँ:
हाँ... बेटी तुम ठीक कहती हो,
ये समाज की झूटी शान यूँही हमारी बलि
लेती रहेगी
लेकिन ! अब और नहीं सहेंगी हमारी बेटियां ,
मैं लड़ूंगी खुद से ,
इस दुनिया से और धकियानूसी विचारों से ,
बेटियां किसी से कम नहीं ,
वो सहती आई , दुनिया में ऐसा कोई गम नहीं,
लेकिन अब नहीं... और अब नहीं I
माँ तुम पापा से कैसे कहोगी ?
उन्हें तो सिर्फ और सिर्फ बेटा ही चाहिए ,
अब माँ उन्हें समझाइये I
माँ:
सही कहा बेटी….
पहले हमें घर की लड़ाई जितनी होगी,
बदलाव घर से ही समाज की और जाता है I
ठीक है मैं अभी उनसे बात करती हूँ ...
मेरी माँ आज खुद से जीत गई ..
शायद देर से ही सही...
मुझे उम्मीद है कि मैं जी पाऊँगी
“एबॉर्शन” का राक्षश मुझे अब छू
नहीं पायेगा,
बीच मैं मेरी माँ के इरादों को खड़ा
पायेगा
मुझे मालूम है, इस बार वो जीत नहीं पायेगा I
माँ :
सुनो जी !
मैंने एक फैसला किया है
पापा : क्या .. क्या फैसला किया री तुमने ?
माँ : मैंने मेरी बेटी को जीवन देने का अडिग निर्णय लिया है I
पापा : क्या बोल रही हो...
आज इतनी जुबान खोल रही हो
इतनी हिम्मत कहाँ से आई अचानक तुझमे ?
माँ : सुन लो जी ... बात एक साफ़,
मेरी बेटी क्या कर पायेगी हमें माफ़ ?
पापा : यूँ हीं पागल मत बनो री तुम
बेटा चाहिए मुझे I
माँ : क्या बेटी होना गुनाह है ?
मैं भी तो किसी की बेटी हूँ,
और माँ भी तो किसी की बेटी हैं I
उन्ही बेटी को मरोगे
फिर बहु कहाँ से आएँगी ?
भाइयों की कलाई सुनी रह जाएँगी,
कन्यादान जैसा पवित्र दान कैसे पूरा होगा ?
यूँ तो जीवन का सार ही अधूरा रहेगा I
पापा : भावनाओं में मत बहो,
चलो एबॉर्शन की तैयारी पूरी है,
आखरी बार सुनो !
परिवार का वारिस भी मेरी मज़बूरी है I
माँ : क्या बेटी किसी से कम है ?
आज क्या नहीं कर रही बेटी ?
सब से आगे चल रही बेटी,
बेटी तो भावनाओं का संसार है
वो बेटी है I
न कोई हमारी इच्छा का अवतार है I
बस अब तुम भी आंखे खोलो !
आप क्यों दुनिया में आये ?
एक बार अपनी माँ से पूछ कर बोलो,
आपकी भी बहने हैं ,
हर सावन में आप भी उनसे राखी पहने हैं I
पापा : सन्नाटा छा गया ,
पत्नी की बातों से आंखों में पानी आ गया I
कोख में बेटी : दोनों की बातें सुन रही थी,
जो समझ में आया .. मन में बाते बुन रही थी
पापा : तुम ठीक कहती हो "लाडो" की माँ ...
शायद मैं भीआँखों पर समाज की की पट्टी बांधे
पाप का भोझा ढ़ो रहा था ,
लेकिन अब बेटी हमारी जीवन का हिस्सा होगी ,
वो होगी जीवन की सार्थक कर्ता,
न भूली एक किस्सा होगी I
माँ : आंखों मैं आंसू अविरल छलकने लगे
पापा : मुश्किल से आंसू रोकते हुए ..
चल पगली ..चल
अपने घर चल ।
दोनों हाथों मैं हाथ लिए घर की और निकल पड़े
लेकिन पवित्र आंसुओं की डोरी छुटी नहीं थी,
पियूष सी धारा आँसूं माँ की आँखों से
छलक पेट पर होते हुए जमीं को
जन्नत कर रहे थे I
कोख में बेटी आंसुओं की नमी पा कर
खुशी सी उछल रही थी I
अचानक मौसम भी बदला
सुहानी हवाएं बहने लगी
बारिश की बूंदें ,
शायद कुछ कहने लगी
घर के सामने वाले पेड़ पर
अब एक कोयल भी रहने लगी ।
