दुश्मन !
दुश्मन !
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मेरे इश्क का दुश्मन
कमबख्त
ये ज़माना तो है ही
आज तो मगर ये
नामुराद कोरोना भी
बन बैठा है दुश्मन
मेरे इश्क का !
अब तू ही बता जानेमन
किस तरह मिलूं तुमसे ?
ग़म न कर ऐ दोस्त
परवाह न कर तू
किसी की
गर साथ में हम हैं
तो क्या ग़म है !
कोरोना तो नन्हा वायरस है
भूखा रहेगा तो
जल्दी ही भाग जाएगा !
बस फिर भला
कौन रोकेगा मिलने से हमें ?
ये ज़माना ?
ये कोरोना ?
या ?
