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Krishna Khatri

Others

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Krishna Khatri

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दुश्मन !

दुश्मन !

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मेरे इश्क का दुश्मन

कमबख्त

ये ज़माना तो है ही 

आज तो मगर ये

नामुराद कोरोना भी 

बन बैठा है दुश्मन

मेरे इश्क का !


अब तू ही बता जानेमन

किस तरह मिलूं तुमसे ?

ग़म न कर ऐ दोस्त 

परवाह न कर तू 

किसी की 

गर साथ में हम हैं 

तो क्या ग़म है !


कोरोना तो नन्हा वायरस है 

भूखा रहेगा तो 

जल्दी ही भाग जाएगा !

बस फिर भला 

कौन रोकेगा मिलने से हमें ?

ये ज़माना ? 

ये कोरोना ?

या ?


     


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