दोस्तो साथ बिताया एक दिन
दोस्तो साथ बिताया एक दिन
दोस्तो के साथ बिताय तो इक पल भी याद रहता है।
दोस्तो की याद को ना कोई दिल से भूला पाता है।
शादी हो गई सब दोस्तो की, सब हो गए दूर-दूर।
सब को इक-दूजे की याद सताई,
इक-दूजे से मिलने की गूहार लगाई।
इज-दूजे को फोन लगाया,
सबने फिर इक प्लान बनाया।
मिल के सब फिर वो पहुँचे पूराने स्कूल,
जिस चपरासी को तँग थे करते,
बात-बात पे उसको करते थे परेशान,
उसको जा के गले लगाया,
कुछ थोडा़ प्यार जताया।
जिस के बाग से तोड़ के आम, खाते थे हम चोरी-चोरी,
उस माली काका से जा के होली के दिन होली खेली।
कालिज के याद आए फिर हम सब यारों को,
जा कर के उस कैंटीन वाले से चाय समोसे खाए थे।
घूमघाम के फिर यारों ने पूरी ने मस्ती में दिन वो बिताया था।
याद आ गया यारो को फिर वो रामलाल रिक्शा वाला,
स्कूल छोड़ने हमको वो जाता था,
कभी-कभी तो लाड मे आकर कँधे पे उसके चढ़ जाया करते थे।
सोचा उसके घर जाने को, जाकर के मिल आने को।
जैसे ही उसकी गली में पहुँचे, काकी रामलाल की बीवी,
माथा पीटती रोती जाती, मृत्यु शय्या पे पडा़ रामलाल
बेटा ना कोई, तीन बेटियाँ, दाग़ कौन लगाएगा।
यारो ने फिर जोश दिखाया, काँधा देकर रामलाल को,
अपना फर्ज हमने निभाया,
काँधे चढ़ते थे जिसके, काँधा दे उसको वो कर्ज़ चुकाया,
दाग़ दे कर के उसको, यारो का मेला घर को आया।