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डॉअमृता शुक्ला

Others

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डॉअमृता शुक्ला

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दोहे

दोहे

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बेटी होती है परी, बेटी रखती मान। 

घर में उजियारा करे, सबका है सम्मान।।


कागा और कोयल हैं, दोनों का रंग भाय। 

 मीठे सुर लगते भले, कटु सुर सहा न जाय।। 


ममता का सागर रहे, दुख में भी मुस्काय। 

सबके सपनों में सदा, अपने सपन सजाए।। 

प्रीत भरोसा जब रहे, घर संगम बन जाए। 

छल प्रपंच से दूर हो, सुख-शांति मिल पाए।।


नयन वाचाल बन रहें, होंठ जब भेद छुपाए 

मन चाहे क्या कहना, उन तक जा पहुँचाए।


बुरा समय न रहे सदा, मन काहे घबराय।

धैर्य कभी न छोडिये,विपदा कैसी आय।।


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