धरती के परिपथ पर
धरती के परिपथ पर
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धरती के परिपथ पर
मोड़ लिया रश्मि-रथ
उत्तरापथ हुए पुनः
सूर्य माघ मास के
गुनगुनी किरणों के
हिरणों की चौकड़ी
से पुनः स्पन्दित
वन दूब घास के
उतर भूमि मैया पर
धूप की चिरैया ने
दाने सब चुग डाले
कोहरे कुहास के
हरीतिम गलीचे पर
बैठी थी उर भींचे
सरसों ने छेड़ दिए
सुर नये सुवास के
