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Prem Bajaj

Others

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धरती अम्बर का प्रेम

धरती अम्बर का प्रेम

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धरती से सदा प्यार किया करता अम्बर 

माँग उसकी सूरज से भरा करता अम्बर ।

दूर चाहे कितना भी वो हो जाए उससे 

पर क्षितिज पर जा मिला करता अम्बर ।

ना डूबे घने तिमिर में उसकी प्रियतमा

उजियारा उसको लाकर दिया करता अम्बर।

बरसा कर बादलों से जल की धारा को

धरती की प्यास बुझाया करता अम्बर ।

छिटका कर के पूनम की चाँदनी को 

धरती को उपहार दिया करता अम्बर ।

तपा-तपा कर रोज़ ही खुद को, धरती से 

प्यार का इकरार किया करता अम्बर ।

रूठा करती धरती फिर भी उससे 

हर बार ही मनुहार किया करता अम्बर ।

धरती अम्बर की ही प्रियतमा है 

उसी का श्रृँगार किया करता अम्बर ।

सदियों से ही * प्रेम * कर रहा उसे 

नहीं कभी कोई कमी किया करता अम्बर ।


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