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Hardik Mahajan Hardik

Others

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Hardik Mahajan Hardik

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धरा की धुरी

धरा की धुरी

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श्वेत-श्वेत सी जो यह धरा 

इस धरा में मुझे बह जाने दो

पता नहीं ये धरा की दूरी

समतल अविरल हो जाने दो


अनवरत यथार्थ धरा को अब

उन्मुक्त अवचल हो जाने दो

बह रही हैं सदियों से जो धरा

धरा को भी यकीन जाने दो 


किसी भी समय सीमा नहीं

अनिच्छुक धरा की दूरी 

दूरियों को दूर अब दूर जाने दो 


समय नहीं यह जो श्रेणी का हो

अनवरत सीमा कर जाने दो 

धुरी नहीं होती धरा पे कभी 

समतल जरा निकट हो जाने दो। 



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