धन्य है पिता
धन्य है पिता
जीवन की हर सुबह
चल पड़ते है वे
दिन भर गतिशील
दो पैर, जो कभी रुके नहीं
हर दिन ढेरों जिम्मेदारी लिये
घर का भार वहन करते
बच्चों के झूले
दो कंधे, जो कभी झुके नहीं
न जाने उन दो हाथों में
कौन सी अनोखी शक्ति है
जीवन भर काम पे रहे
लेकिन, आज भी थके नहीं
कई मरे हुए सपने
दबे रह गये तकलीफों के नीचे
कर्ज की चिंता में डूबी
दो आँखें, जो कभी सोयी नहीं
एक मुरझाया चेहरा
वक्त से पहले झुर्रियों से भरा
खामोश बैठा अकेला
जीवन के सवाल सुलझाता रहा
विवश होकर कभी
लाचारी नहीं दिखलायी
जिम्मेदार बने सदा
पिता की सारी जिम्मेदारी उठायी
अदम्य साहस लिये
वह आजीवन चलता ही रहा
फर्ज सारे अदा किये
दर्द में भी वह हँसता ही रहा
घर की छत बने वे
दीवारों को संबल देते रहे
घर का चूल्हा बूझे नहीं कभी
इसीलिए जीवन भर चलते रहे...।
