देश अपना
देश अपना
देश अपना सोने' की चिड़िया कलाता था कभी।
क्यों कहा जाता रहा, आओ विचारें हम सभी?
अन्न-दानों से भरा था देश अपना उस समय,
खेतियाँ होती बड़े पैमाने' पर थी जिस समय।
हर कृषक सम्पन्न था, खाद्यान्न उनके घर भरा,
थी नहीं चिंता उन्हें कुछ बात की किंचित-जरा।
विश्व के बाजार में ऊँचा हमारा नाम था,
अन्य देशों से हमें व्यापार जैसा काम था।
हाँ, विदेशी राष्ट्र से व्यापार का सम्बंध था,
अन्न के बदले कनक देंगे यही अनुबंध था।
स्वर्ण का आदान इतना हो गया था देश में,
मात्र कुछ हिस्सा रहा होगा कनक परदेश में।
था सिहांसन पास अपने स्वर्ण जिसमें थे पड़े,
नग व हीरे, रत्न-पत्थर मूल्य वाले थे जड़े।
अन्य हीरों से बड़ा हीरा यहाँ था कोहिनूर,
ख्याति जिसमें विश्व में इस देश की थी दूर-दूर।
मूल्य इनका आँकना बस में नहीं था जान लो,
देश में ये दो धरोहर थे जरा पहचान लो।
अब बताओ आप ही इस देश को हम क्या कहें,
देख वैभव को भला क्योंकर यहाँ हम चुप रहें।
वेद जिसकी कर रहे गुणगान अपने सूक्त में,
जन्म जब हमने लिया, गुण क्यों न गाएँ मुफ्त में।
थे सभी मालिक बने, नौकर यहाँ कोई नहीं,
थीं इमारत भी बड़ी,बेघर यहाँ कोई नहीं।
विश्वगुरु था देश पहले, ज्ञान के भंडार से,
शक्तिशाली थी धरा यह शस्त्र के विस्तार से।
विश्व में कोई कहीं भी देश ऐसा था नहीं,
प्रभुत्व भारत देश-सा धरती पे' था छाया नहीं।
आपको बतला दिया कारण सभी मैंने वही,
क्यों हमारे देश को सोने की' चिड़िया है कही।