चुपके-चुपके से।
चुपके-चुपके से।
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चोरी-चोरी चुपके-चुपके से वो आई,
बनाना हमें जिसे हक़ीक़त में लुगाई।
चोरी-चोरी हमने भी अखियाँ लड़ाई,
ख़्वाब देखते हैं कब बजेगी शहनाई।
चोरी-चोरी चुपके-चुपके नींद गंवाई,
कितनी रातें सच कि नींद नहीं आई।
सुबह उठके हमें वो जब नज़र आई,
दिन बढ़िया और रात चैन नींद आई।
चुपके-चुपके से वो छत पर ही आई,
चुपके से बातें करके ही रातें बिताई।
