चंद्रमा की रोशनी
चंद्रमा की रोशनी
एक दिन देखा,
सोच में पड़ी
चंद्रमा की रोशनी अचानक आँख में पड़ी।
सड़कों पर रोशनी को देखा तो प्यारी लगी,
आसमान में तारों की चादर भी न्यारी सजी।
दिल खुश हो गया मेरा,
फिर सोचा रात बीत जाएगी हो जाएगा सवेरा।
मैंने कहा पिताजी से,
पिताजी ने बोला-बोलो ना,
अचानक तुम क्यों सोच में पड़ी,
मैंने कहा देखो चंद्रमा की रोशनी को,
पिताजी ने कहा 'देखा तो'
इस रोशनी ने मेरे दिल को छुआ,
पापा 'बोले तो क्या हुआ'।
बुरा तो लगा बोला पापा ने कुछ ऐसा,
पर चंद्रमा तो ऐसा लगा जैसे पैसा।
ध्यान से देखना चंद्रमा को,
ऊपर से नीचे हिल जाओगे,
फिर पता नहीं कहां जाओगे।
चंद्रमा की रोशनी लगती है प्यारी,
जिसने देखा लगेगा चंद्रमा है
तुम्हारी सवारी।
बापूजी को भी पसंद थी रोशनी
चंद्रमा की,
यही तो ग़लती थी,
मैंने तब जन्म ही नहीं लिया,
और गांधी जी ने अकेले ही
सारा चाँद का अमृत पी लिया।
पत्र लिखना पसंद था उनको,
लालटेन थी पर जिलाते नहीं थी उसको।
पसंद उनको चंद्रमा की रोशनी थी,
तब लगी मैं पानी पीने थी।
चलो आज की बात बस इतनी ही थी।
