चिलचिलाती धूप
चिलचिलाती धूप
चिलचिलाती धूप में तुम थी प्यार की छाँव प्रिय
छाँव है अब कहीं नहीं झुलसा पूरा बदन प्रिय
माघ पूर्णिमा का दिवस है पर शीतलता है कहीं नहीं
झुलसा पूरा बदन है मिलती छांव अब कहीं नहीं।
चाँद को रोज निहारुं मैं ,चकोर बनाया तुमने प्रिय
कभी तो आओगी तुम जलाया दिल का दिया प्रिय
चैन सुकून मेरा सबकुछ तुम पर है न्यौछावर प्रिय
आखिरी आस तुम पर टिकी अब जल्दी आओ प्रिय।
रात सन्नाटे ने सिखाया हमको बस तेरा ही इंतज़ार प्रिय
जमाना चाहे जो भी कहे मुझे तुम पर है ऐतबार प्रिय
कई मौसम बीत गये आओ जल्दी इस बार प्रिय
मेरा प्रेम बस तुमको समर्पित रहेगा हरबार प्रिय।
मुसाफिर करता ईश्वर से वंदना सुन ले पुकार इस बार प्रिय
रातदिन की तड़पन खतम हो जाए इसबार प्रिय
आये जीवन में बसंत जो तुम आओ इसबार प्रिय
राह तुम्हारी देख रहा मिलो तुम मुझे हरबार प्रिय।
