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Rajeshwar Mandal

Others

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Rajeshwar Mandal

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चाय

चाय

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कुछ दिनों से काम का अत्यधिक बोझ हो जाने केकारण रमेश बाबू आफिस से देर से लौटने लगे थे।फलत: घर का साग सब्जी राशन पानी का मार्केटिंग

उनके पत्नी को ही करना पड़ता था।


दो चार दिनों तक तो ठीक ठाक रहा पर रोज रोज का देरी अब सविता (पत्नी) को खलने लगा था। छोटी छोटी बातों से थोड़ा बहुत बकझक जो शुरू हुआ था अब रोज का रूटीन बन गया।और शुरू हो गया दोनों के बीच मन मुटावल।पहले तो आफिस से आने पर चाय पानी मिल भी जाया करता था। लेकिन जब से बकझक शुरू हुआ अब वह भी बंद हो चुका था।


बेटी इसी साल मैट्रिक प्रथम श्रेणी से पास की है।रमेश बाबू मन ही मन प्लान बना रखा है इंटर के बाद बेटी को कोटा मेडिकल की तैयारी के लिए भेजे।

लोगों से सुना है कि वहां ट्यूशन फीस बहुत है सो रमेश बाबू अभी से ही हिसाब से पैसा खर्च करना शुरू कर दिए हैं। पहले कभी कभार रेस्टरां वगैरह में नास्ता पानी कर भी लेते थे। लेकिन अब दोस्त यार से कोई न कोई बहाना बना कर कटने लगे है।


आज भी रमेश बाबू आफिस से देर से लौट रहे हैं। मन थका थका सा लग रहा था । मन ही मन सोचने लगा घर में तो चाय वाय मिलने से रहा। चलते हैं थकान मिटाने के लिए बीयर- वीयर ही एक आध गिलास पी लें। नहीं नहीं ये ग़लत होगा अन्तर्मन से आवाज आई। आदत लग गई तो जो भी दो चार पैसा बचा रहे हैं सब हिसाब गड़बड़ा जायेगा। और मन मसोस कर हल से छुटे बैलकी तरह गर्दन झुकाए घर की ओर दौड़ पड़ा। 

                       

सोफ़ा के बगल में आफिस बैग रख धराम से सोफा पर बैठ गये। थकान के कारण पुरा तन बदन दर्द कर रहा था। मन में तरह-तरह की इधर उधर की बातें सोचते हुए आंखे लगने ही वाली थी कि किसी के पदचाप का एहसास हुआ। आंख खोलते कि उससे पहले कान में आवाज गूंजी पापा ..... चाय।


रमेश बाबू ने आंखें जैसे ही खोला तो देखा बेटी एक हाथ में पानी का गिलास और दूसरे हाथ में चाय कप लिये खड़ी थी।अपनत्व का एहसास कर सहसा रमेश बाबू के आंखों से गंगा-जमुना की अविरल जल धारा प्रवाहित होने लगी थी। कांपते हाथों से उसने बेटी के हाथ से चाय लिया।पहली ही घूंट पीया था कि फिर आंखें डबडबा गई।बेटी वहीं खड़ी थी । उसे पास बैठने का इशारा किया।सच बताना बेटी ये चाय तुम बनायी हो न ।

( शायद आज पहली बार बेटी ने अपने हाथों से चाय बनायी थी )।


बेटी थोड़ी सहम सी गई। "क्यों पापा ठीक नहीं बना है ?"


"ना ना बेटा ये मैंने कब कहा।चाय तो बरसों से पी रहा हूं। वही दुध वही पत्ती और चीनी। लेकिन आज की चाय का स्वाद ही कुछ अलग है।"


कहते कहते रमेश बाबू चाय में अपनत्व का एहसास करफफक फफक कर रो पड़े थे।दृश्य देख बेटी की भी आंखें डबडबा उठी थी।पास रखें रुमाल से पापा का आंसू पोंछते हुए बेटी बस इतना ही कह पायी "आप भी न पापा...... ‌‌।"


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