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Krishna Khatri

Others

3  

Krishna Khatri

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चार छोटी कविताएं

चार छोटी कविताएं

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420


      

1

दोस्त , कुछ तुझमें थी 

कुछ मुझमें थी 

कमियां तो हम दोनों में थे 

मगर तू गिनाता रहा 

और मैं ,

नजरअंदाज करता रहा !

          


2

कभी वो वक्त था 

जब थे खिलौने ही 

अपनी थाथी 

जादू भी लगता था सच्चा

मगर आज वो वक्त है 

जबकि ,,,,,,

सबकुछ है पास मेरे 

फिर भी लगता है 

सब खाली 

ना ही लगता कुछ अपना 

नहीं यक़ीन होता -

सच्चाई पर भी !

       


3

ऐ दिल ,

इतना भी आसान न बन 

कि तुम्हारी यह आसानी ही 

तुम्हें ले डूबे 

गर कुछ भी है आसान 

है उन बिना करंट के

तारों की तरह 

जिन्हें पारकर 

कोई भी खजाना 

लूटकर ले जाएगा !

      


4

इक तमन्ना है दिल की 

आज की तरह ही 

जिन्दगी के ,

आखिरी सफर में भी 

तुम्हारा साथ हो 

तुम्हारे ही ,

कांधे पे होकर सवार 

चलूं मैं इठलाती 

और आती रहे मुझमें 

खुशबू तुम्हारी !

        





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