बयां न कर पाया
बयां न कर पाया
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हम खुदहीको बयां करते रहे हालेदिल,
सुनने वालों का काफ़िला चला गया।
कुछ कहना था सबसे, मगर नसीब
हालत को लब्ज़ों में बयां न कर पाया।
दर्द ऐसा भी नहीं, ज़िन्दगी गुजर जाए,
पर गुज़ारे भी कैसे ये समझ न आया।
मतलब जिंदगी का समझे तो,
हमदम हमारा कोई ना मील पाया।
तनहा हुए हम मगर तनहाई,
हालेदिल क्या हैं यहीं जान न पाया।
पूछें भी किस को कैसे हैं हम,
हमें ही खुद को पेहचानना नहीं आया।
