बुद्ध
बुद्ध
रात्रि के प्रहर में
छोड़ मोह माया का संसार
निकल पड़े गौतम
करने बुद्ध जीवन को साकार
खोल दिये कुंडल
गले का हार औ' शृंगार
घुटने टेके बैठा सारथी
समक्ष उसके उठाई तलवार
काट डाले घुंघराले केश अपने
भेज दिया यशोधरा को उपहार
लो भेंट मेरी ओर से अंतिम बार
करती रही जिन लटों से तुम प्यार
और उछाल दिये कुछ केश
उपर आकाश के उस पार
कि न छूना धरती को तुम
प्रारम्भ हुआ बुद्ध का संसार।
आम्रपाली का आतिथ्य स्वीकार
पहुँचे भोजन को वेश्या के द्वार
ढीले ना छोडो वीणा के तार
कसो ना इतना कि टूटे बार बार
धम्मपद ग्रंथ को दिया आकार
किया बहुजन हिताय का प्रचार
हे महात्मा हे महामानव हे गौतम
करो आप मेरा प्रणाम स्वीकार
हो तुम नबी या कोई अवतार
हे बुद्ध आपको बारम्बार नमस्कार।
