बस सफर तक का साथ था हमारा।
बस सफर तक का साथ था हमारा।
बस सफर तक का साथ था हमारा, तुम्हारी मंजिल कोई और है।
तुम्हारी उस डूबती कश्ती का, साहिल कोई और है।
हां कोशिश पूरी थी मेरी तुम्हारी मंजिल बनने की,
पर क्या करती मैं भी जब तुम्हारी ख्वाइश कोई और है।
हां बस इतना कहूंगी, जो कसम खाई तुमने मेरे साथ निभाना उन्हे उसके साथ।
बीच राह में मेरी तरह उसका हाथ छोड के मत चले जाना तुम।
जिसका दिल रखने के लिए मेरे अरमान कुचल दिए थे तुमने,
बस उसके लबों की हसी की वजह बन जाना तुम।
जिस प्यार के लिए मेरी आंखें तरस गई थी,
उसे वो सारा महसूस काराना तुम।
जो वादे किए तुमने मेरे साथ, उसके साथ निभाना तुम।
हां पर अगर कभी ख्याल आए मेरा तो
बिना इकरार वाली एक मुस्कान अपने लबों पे ले आना तुम।
और मेरी खुशी या दुख का ख्याल तो तुम्हें आता नहीं,
पर फिर भी अगर कभी आए तो सोचना तुम्हारे सफर की एक साथी थी बस मैं,
मंजिल तक पहुंच के तुम्हें चली गई अपने रास्ते।