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KAVITA YADAV

Children Stories

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KAVITA YADAV

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बरगद की छाव

बरगद की छाव

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निश्छल सा भोला सा आज का स्वपन

कल अकेला सा, अदभुत ना समझो 

बचपन का साथी मेरा बरगद का पेड़


कभी ना भुला में हल्की सी,वो ठंडी सी

लहराती हवा में,मेरा दोस्त वो साथी मेरा

बरगद का पेड़ ओर उसकी वो छाँव 


अचरज भरे लफ्ज़ो में गुमनाम सा हूँ

दोस्तों दिखावा ना,कोई बहाना बनाऊ

कभी भी खेलु या उसको बुलाऊ

पल में हल्की सी थपकी सी लाये

बचपन का साथी वो बरगद की छाँव 


सो जाऊ या कहि पर में खो जाऊ

माँ की ममता,पिता का दुलार सा

भाई का स्नेह,बहन की शरारत सा

बचपन का साथी सा,वो बरगद की छाँव 


अदभुत सा अचरज सा निश्छल, निस्वार्थ सा

मिले तो इंसान सा ना मिले कोई मुझको

सैतान या अनजान सा

प्यार है मेरा वो,रिश्ता जन्मजन्मांतर का

वो बरगद की छाव ओर बरगद का दिल से

जिया एक जन्म नही मैने

जी लिया सात जन्म सा युग युगांतर सा

वो बरगद की छाव ओर बरगद की छाँव 



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