बहुत शोर करते हुए बीनेंगे हम चिताओ से फूल
बहुत शोर करते हुए बीनेंगे हम चिताओ से फूल
चुप नहीं
बहुत शोर करते हुए
बीनेंगे हम अपनों की चिताओ से फूल
जब राख ठंडी पड़ चुकी होगी
या फिर नहीं भी
क्यूंकि जल्दी होगी वापसी की।
भर लेंगे मटके में मूंगफली के छिलके
और बोल देंगे झूठ कि
हड्डियां खोखली थी इसलिए हल्की हैं अस्थियां
वो रोते छाती पीटते कर लेंगे यकीन
क्यूंकि भरोसा है तुम्हारे झूठ पर।
बस बारिश नहीं होनी चाहिए
वरना फिर कहां से लायेंगे नई लाश
फिर एक बार जलाकर राख करने के लिए
या फिर खुद लेट जायेंगे
क्यूंकि घर में दिखानी है शक्ल कि
अस्थियों के साथ।
क्या कुछ नहीं बचता
बचाने लायक हर छोटी बड़ी लड़ाई के बाद?
उस आग का क्या जो लगाने की धमकी दी थी
बड़े लड़के ने पर दूसरों के रोकने से लगा न सका
उसी आग में जलता बैठा रहा पिता, पुत्र, मां का परिवार
फिर रोटियां सेंकी गईं और खाई गई
अकेले कोनों में बैठकर।
और उस गृहस्थी का क्या जिसकी चीजें सबूत के तौर पर
तोड़ी गई कि सब बर्बाद करना है
जिसके टुकड़े देर तक
बीनता रहा पूरा परिवार,
और झाड़ू हाथ में लिए मां।
सब मिटने के बाद भी बचा रह जाता है
कुछ, राख के निशान कौन सी राख से पोंछेंगे
फूल बीनने के इंतजार में बैठा है
सबसे छोटा, पर हद है कि ये राख ठंडी ही नहीं होती
चिता जलती ही रहती है
कितनी बार मरना होगा इस आग से मुक्ति लेने के लिए।
तुम्हारे पूछने से नहीं मिलता पता ठीक बस का
जेब में जाने के पैसे भी होने चाहिए
और थोड़े ज्यादा क्योंकि
भूख पाप की तरह चिपकी रहती है
ऐसा मां कहती थी जो बूढ़ी थी
और चलते हुए दे रही थी 50 रुपए
तुम्हारे हाथ में
चुपके से
और दबा रहीं थी उंगलियां कि कोई देख न ले
ये अपराध करते हुए
पर तुम जवानी के जोश में उन्हें फेंक आए थे
दो मंजिल के मकान की दहलीज पर
घर कहना तुमने उसी समय छोड़ दिया था।
खिड़की बजती है तो जैसे याद दिलाती है
चटकते हाथ, होंठ, एड़ियां और टूटे सपने
और एड़ियों की दरार भरने के लिए
मोम भी नहीं था घर में
क्योंकि मोमबत्तियों को खा गई थी बिजली
और हम हो गए थे बुजदिल क्योंकि
छोड़ दिया था अंधेरों से सामना करना।
एक मोमबत्ती कितना कुछ सही कर सकती थी।
अफसोस।
तुमने उससे भी नहीं कहा अलविदा
जिससे कहते थे कि कुछ भी करूंगा गलत
तो तुम्हें जरूर बताऊंगा।
तुम्हें अपने ही जाने के फैसले पर यकीन नहीं होगा
या फिर उसके रोकने की ताकत पर भरोसा?
मैं तुम्हें बुजदिल मानता हूं।
क्या? तुम पोंछते हो आंसू क्योंकि इंसान हो?
पर भीतर तो जैसा कोयला है जो नहीं सुलगेगा इतनी आसानी से
क्योंकि सीलन है
और दरारें तुमने भर रखी हैं
क्यूंकि मजबूत होना था
पर कमजोर थे
बहुत कमजोर
जैसे नाली में बहता कागज।
