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Krishna Khatri

Others

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Krishna Khatri

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भला कौन बचा है !

भला कौन बचा है !

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ये ज़िन्दगी खड़ी है 

केवल चार पायदानो पर 

पहली पायदान है -

शैशवास्था

दूसरी है ,,

किशोरावास्था

तीसरी है ,,,

जिंदादिल जवानी।

यही वो पादान है 

जो चलती है 

अपनी शर्तों पर।

इस पर चलकर इन्सान 

हासिल करता है बहुत कुछ

और करता है गर्व 

अपनी उपलब्धियों पर 

इतराता है अपनी जवानी पर 

इस बीच ,,

जाने कब रखता है कदम 

चौथी पादान पर

और फिर बेचारा 

सोचता ही रह जाता है,

तब तक दबे पांव

आ जाता है बुढ़ापा,

 जो आकर कभी नहीं जाता 

उसे पाकर इन्सान 

दिनों-दिन होता जाता है अशक्त

बस ,,,,,,,,, 

तब बेचारा याद करता है 

अपने सुनहरे दिनों को 

फिर तो रोज-रोज 

वहीं -वही सुनाता है 

जो भी मिलता है उसको

लोग छुड़ाते हैं पीछा

उसकी इस सनक से 

वो तरसता है बतियाने को

लेकिन ,,,,,,,

लोग समझते हैं सनकी ,

भागते हैं दूर 

वे भूल जाते हैं 

कि एक दिन 

आएगा उनको भी बुढ़ापा

चलने लगेगी सनक 

 साथ उनके ,

तब वे क्या करेंगे 

काश ! वे सिर्फ ,,,,,,,

सिर्फ इतना ही याद रखते ,

भला कौन बचा है

बुढ़ापे की सनक से ,

तो खुद-ब-खुद ,,,!

       





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