बगुला - भगत बनकर छलता है
बगुला - भगत बनकर छलता है
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किसी की चाहे गर्दन लंबी हो या छोटी,
शिकार को तो पकड़ ही लिया जाता है !
कोई जरूरी नहीं है कि कोई ऊपर से,
शाकाहारी हो, वह निरामिष रह जाता है !
लालच और स्वार्थ से भरे हुए इस युग में,
भला ऐसा कौन किसी का अपना होता है !
ऐसे ही बगुला-भगत बनकर हर किसी को,
यहां पर कोई ना कोई दिन दहाड़े छलता है !