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Shrishti Gupta

Children Stories Inspirational

4  

Shrishti Gupta

Children Stories Inspirational

बचपन

बचपन

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4

देखी जो छवि एक बच्चे की ,

सोचा कि मैं भी थी कभी उसकी उम्र की ।


फिर याद आई मुझे मेरी सुनहरे बचपन की,

एक गहरे सागर सी।


खेलती थी मैं हंसती थी ,

सुखद जीवन जीती थी ।


सब चुप करते थे अगर रोती थी ,

सब खेलते थे तो हंसती थी ।


पढ़ती थी मैं लिखती थी ,

किसी से ना डरती थी ।


पल भर में मैं हो गई बड़ी ,

बीत गई बचपन की घड़ी ।


ना रही वह बचपन की सुंदर परियां ,

चली गई वह मेरी प्यारी गुड़िया ।


शुरू हुआ नया सवेरा,

पर वही रह गया मन मेरा ।


मैं कहती थी और कहती हूं ,

मैं अपना बचपन फिर से जीना चाहती हूं।


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