बचपन
बचपन
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देखी जो छवि एक बच्चे की ,
सोचा कि मैं भी थी कभी उसकी उम्र की ।
फिर याद आई मुझे मेरी सुनहरे बचपन की,
एक गहरे सागर सी।
खेलती थी मैं हंसती थी ,
सुखद जीवन जीती थी ।
सब चुप करते थे अगर रोती थी ,
सब खेलते थे तो हंसती थी ।
पढ़ती थी मैं लिखती थी ,
किसी से ना डरती थी ।
पल भर में मैं हो गई बड़ी ,
बीत गई बचपन की घड़ी ।
ना रही वह बचपन की सुंदर परियां ,
चली गई वह मेरी प्यारी गुड़िया ।
शुरू हुआ नया सवेरा,
पर वही रह गया मन मेरा ।
मैं कहती थी और कहती हूं ,
मैं अपना बचपन फिर से जीना चाहती हूं।
