बचपन
बचपन
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काश..बचपन शीघ्र उछलता कूदता हुआ
माँ की गोद में वापस लौट आता
जीने का मज़ा ही कुछ ओर नज़र आता ।
वो सावन का जोशीला पानी..
वो कागज़ की अल्हड़ कश्ती..
अक्सर नन्हें हाथों से संवर कर ,
कबसे बेताब थी गली-मुहल्ले में बहने
नुक्कड़-चौराहे से मस्त मलंग गुजरने ,
जिसमें मल्लाह भी में, पतवार भी में
झील की तटों में, नदियों के बीचों में ,
मोज़ों की बस्ती में, रवानगी की मस्ती में
लम्बी छलांगें थीं, ऊंची उड़ाने थीं ।
असंख्य यारों से मिलने मासूमियत का सफ़र था ।।