"बचपन की यादें"
"बचपन की यादें"
आओ बचपन कि यादें ताजा करते हैं।
बचपन कि गलतीयों पर खुद पर हंंसीआती है।
मां कहती सो जा लला हम सुबकने लगते।
कभी मम्मी कि बात नहीं मानते।
जीद करके नदी तालाब में नहाने चलें जातें।
कभी दोस्तों संग बैतहाशा दौड़ कर चोटिल होते।
कभी पड़ोसी के छोटे बच्चों को पीट देते।
कभी समय पर उठकर स्कूल नहीं जाते।
बहुत हीं बचकानी हरकतें करते थें।
पचपन पार करने पर विचार करते हैं।
तो बच्चें हम जैसी हरकतें करते हैं।
अपनी मम्मी कि बातें यह भी नहीं मानते हैं।
बच्चें भी हमारे जैसे ही हैं।
बच्चें तों बच्चें होते हैं।
कोई फर्क नहीं हैं।
हमारे बचपन और आज कल के बच्चों के बचपन
में बचकाना हरकतें ज्यों कि त्यों हैं।
हमेंअब पचपन पार करने पर समझाई हैं।
