बचपन और पिकनिक
बचपन और पिकनिक
बचपन
हंसता- खेलता- गुनगुनाता है।
हर फिक्र को,
भुलाकर ,
हर दिन को ,
एक पिकनिक की तरह मानता है।
बचपन
हंसता -खेलता -गुनगुनाता है ।
दोस्तों के साथ ,
मनाई एक दिन की ,
पिकनिक को ,
बचपन भूल नहीं पाता है ।
बचपन ,
हंसता- खेलता -गुनगुनाता है।
पानी पे उछलता है ।
हर छल को भूलता है
रेत के किले बनाता है ।
जिंदगी की ,
हकीकत से कितना ,
परे सोचता है।
कागज की ,
कश्ती में जिंदगी की ,
होड़ भूलता है ।
कुछ जानता नहीं।
बस ,
दोस्तों के साथ ,
खेलना जानता है ।
स्कूल के बस्ते से ,
परे भागना जानता है ।
अपने दोस्तों के साथ,
जिंदगी की हर खुशी को,
खोलना जानता है।
बस हर दिन,
पिकनिक हो ,
बस यही चाहता है।।