बौनी उडा़न
बौनी उडा़न
कैसी ये रब की इबादत करते,
हर बात की शिकायत करते,
कितने बौने है ये आज के लोग।
बडे़ मतलबी है यहाँ सब,
बिना मतलब ना किसी पे इनायत करते।
बेईमान भी देखो यहाँ पर शराफ़त का मुखौटा औढे़ रहते।
अपने से छोटे(ग़रीब) को देखो पाँव से ये ठोकर लगाते,
ऊँचे ओहदे वाले को हाथ जोड़ कर प्रणाम है करते।
कैसे है ये बौने लोग, जात-धर्म पे देखो,
भाई-भाई में झगड़ कराते।
माँ-बाप की कद्र ना कोई,
ना ही उनकी चिन्ता है,
वृद्ध-आश्रम में उनको छोड़ कर,
खुद को तब है सुखी बताते।
मुँह से राम-राम है रटते रहते,
पीठ में अपनों के ही खँजर चुभोते,
ऐसे है ये बौने लोग।
कैसी है ये लवायत आज की,
कैसा आया है ये ज़माना,
कैसी बौनी सोच है इनकी,
कैसा बौना कद है,
कैसे है ये लोग आज के,
कैसे भरते बौनी उडा़न है।
