बाऊसाजी/पापा जी की पेंसिल का जादू
बाऊसाजी/पापा जी की पेंसिल का जादू
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पेंसिल एक छोटी सी है जादू उसका बहुत बड़ा।
हमने देखा है पेंसिल का जादू चलते हुए।
किस तरह से पूरे पेज में पूरे भाषण को शॉर्ट हेंड से एक पेज में लिखते हुए।
मेरे बाऊ साहब जी की
पेंसिल का जादू चलते हुए।
शॉर्ट हेंड से कॉपियां भरते हुए।
फिर उस एक डायरी से 10 किताबें निकलते हुए।
महाराज साहब केभाषण को कॉपी में उतारते हुए फिर उसकी किताबें निकलते हुए।
पेरूमल चेटिया की जादू भरी पीली पेंसिल आज भी याद आती है।
जो उन्होंने मेरी शादी के टाइम मुझको एक दी थी,
उसको मैंने वर्षों तक संभाल के रखा।
काम में ली बिल्कुल छोटी सी हो गई तब पेन के पीछे के हिस्से में डालकर काम में ली
ऐसी प्यारी जादू की भरी पेंसिल थी।
इसमें बाऊसा जी का प्यार बसता था।
बहुत संभाल के रखी थी, अभी भी एक छोटा टुकड़ा पड़ा होगा।
पापा जी की पेंसिल का जादू
हमेशा सिर चढ़कर बोलता था। यह मेरे बाऊसा जीकी पेंसिल है।
फक्र से यह बोलता था
जो मेरे खास काम की होती थी।
जादू भरी वह पेंसिल आज भी याद आती है।
पेंसिल की जादूगरी आज भी याद आती है।