बात
बात
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बात बस
इतनी सी ही होती है
रुई सी, सुई सी,
मामूली, अनेक बातों में एक बात,
हम दोनों अपनी झल्लाहटों का बोझ
डाल हर बात में
दो सिरे खोज लेते हैं,
और उसे खींचते रहते हैं
इस हद तक कि उन सिरों के
बीच आई दूरी रिश्ते में झलकने लग जाती है,
रुई को अनावश्यक वजन देते हैं,
सुई के पैनेपन से एक दूसरे को चुभोते रहते हैं,
हमारे मन पर पड़ी चोटें
रिश्ते को घायल करती रहती हैं,
धीरे-धीरे, हर बात के साथ,
और एक दिन यह घायल चीज़
दम तोड़ देती है पर सुनो,
बात बस इतनी सी ही होती है,
रुई सी, सुई सी।
