बारिश का मज़ा लो
बारिश का मज़ा लो
अपने अंदर के बचपन
को यूं न मार दो,
खोलो दोनो हाथ और
बारिश का मज़ा लो।
भूल जाओ कोई है
आसपास,
बैठा है नज़र गड़ाए,
कर लो इच्छा हर पूरी,
तोड़ दो बन्धन झिझक के,
ये दिन न आएंगे बार बार।
अपने अंदर के बचपन
को यूं न मार दो,
खोलो दोनो हाथ और
बारिश का मज़ा लो।
मिट्टी की सोंधी खुशबू,
बुला रही है तुमको,
बढ़ चलो न रुको,
सुनो तो अपने मन को,
भूल के चारों ओर,
जी भर के कूद लो,
आज
फिर इन गड्ढों में,
अपना बचपन ढूँढ लो,
ये दिन न आएंगे बार बार।
अपने अंदर के बचपन
को यूं न मार दो,
खोलो दोनो हाथ और
बारिश का मज़ा लो।
एक बार फिर खोज,
कोई पुरानी किताब को,
और उसमें से निकाल ले,
बचपन के दोस्त को,
कागज घुमा, दे नया रूप,
बना नाव मचा धूम,
अब ताली बजा मज़ा लो,
ये दिन न आएंगे बार बार।
अपने अंदर के बचपन
को यूं न मार दो,
खोलो दोनो हाथ और
बारिश का मज़ा लो।