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Indu Kothari

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Indu Kothari

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बादल

बादल

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गगन घिरी घनघोर घटा

श्वेता श्याम है जलद अटा

राह तके हम सांझ सकारें

बरसो जल्दी जलधर प्यारे

ताल तलैय्या सारे सूखे 

पंछी पशुधन मरते भूखे

मोर पपीहा कर रहे पुकार

बरसा दो तुम जल की धार

दादुर बोले सावन आया

भीगे मेरी कोमल काया

डाल पे देखो पड़ गये झूले

पिया भी घर की राह भूले

विरहन को मत तड़पाओ

प्यारे मेघा बरस भी जाओ

घना कुहासा भीगी अलकें

अंखियन सों खुशियां छलके

तुझसे सबकी यही गुहार

प्यारे मेघा बरसा दो जलधार

चौमासे का हुआ आगाज

पर गर्मी से न मिले निजात

शस्य श्यामला धरती सूखी

 सारी जनता मरती भूखी

 टकटकी लगाए तुझे निहारे

 रहम करो हे !बादल प्यारे



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