बादल की कारास्तानी
बादल की कारास्तानी
अपने ज़िंदा रहने की तरकीब निकाली मैंने,
अपने होने की ख़बर सब से छुपा ली मैंने...!
जब ज़मीं रेत की मानिंद सरकती पाई,
आसमाँ थाम लिया जान बचा ली मैंने...!
अपने सूरज की तमाज़त का भरम रखने को,
नर्म छाँव में कड़ी धूप मिला ली मैंने...!
मरहला कोई जुदाई का जो दरपेश हुआ,
तो तबस्सुम की रिदा ग़म को ओढ़ा ली मैंने...!
एक लम्हे को तिरी सम्त से उट्ठा बादल,
और बारिश की सी उम्मीद लगा ली मैंने...!
बा'द मुद्दत मुझे नींद आई बड़े चैन की नींद,
ख़ाक जब ओढ़ ली जब ख़ाक बिछा ली मैंने..!!