अस्तित्व
अस्तित्व
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तुम स्वरों में अंकित हो,
झनकार से उठते हो कोई तुम्हारा नाम पुकारता है
जैसे किसी तान से बजते हो,
तुम थाप से हो सबमे अहम दिखते हो....
तुम पगचिन्ह से हो अपने निशा छोड़ जाते हो,,
तुम वन्दनवार से दिखते हो
सबके ह्रदय में शुभदिन से शुरू होते है,,
और मैं,,,,
किसी थाल में रखी आरती सी हूँ
मैं, जलती हूँ नाम से तुम्हारे...
स्तुति में तुम्हारी मुझे पल पल घूमना पड़ता है,
कभी तेज कभी मध्यम
चारो दिशाओं में भटकना पड़ता है...
होते है आवाह्न नाम के तुम्हारे,,
कौन जाने मेरी पीड़ा मैं थम थम के
यूं जो खुद में पूर्ण होती हूँ ,
मैं पूरी तुममें समाहित होती हूँ
हर लौ लपट में तुम जलते हो मुझमें,
तब कहीं जाकर मैं सबमे सुगंधित होती हूँ...
आचमन के बाद मैं कितनी शेष बचती हूँ
बस मैं वो दिया हूँ जो सबको दूर से प्रज्वलित दिखती हूँ
और अंदर ही अंदर सिर्फ तुम्हारी राख होती हूँ...
मैं लघुतर हूँ हर रूप में तुमसे कहीं फिर भी
तुम कोई देव नही हो।
प्रसाद से हो, सबमे बंटते हो फिर भी
सबके इंतजार में रहते हो,
है हज़ारों रूप तुम्हारे हररूप में
सबको सुंदर ही दिखते हो.....
मैं खत्म हो जाती हूँ अस्तित्व में तुम्हारे..
तुम निरंतर निज नित नए स्पर्श बनते हो।