अल्हड़पन या बचपन
अल्हड़पन या बचपन
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दिन में मटरगश्ती ,
रातों में गहरी नींद थी।
सब अपने और हम सबके ,
किसी से रार नहीं थी ।
चूर्ण,गोलियों ,टॉफियों से भरी जेबें ,
अमीरी ही अमीरी थी।
अगली कक्षा में साथ ही जायेंगे ,
ईर्ष्या की कोई आग नहीं थी ।
यूनिफार्म में आते सब ,
सबसे अलग दिखने की चाह कहाँ थी ।
चिंता ,द्वेष,षडयंत्र ,अविश्वास आदि ,
शब्दों की शब्दकोष में भरमार नहीं थी ।
अल्हड़पन कहूँ या बचपन ,
एक ही बात थी ।
अब वैसा अल्हड़पन आता नहीं ,
शायद यही जवानी की मार थी ।