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Rajkumar Kumbhaj

Others

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Rajkumar Kumbhaj

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अच्छे दिनों की बात में

अच्छे दिनों की बात में

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अच्छे दिनों की बात में

अच्छे दिनों की बात में

जो संदेश छुपा था अच्छे दिनों का

उस संदेश को समझने में

कुछ वक़्त लगा जनता-जनार्दन को

कि अच्छे दिन आए तो किसके?

सरकारी खर्चे पर विदेश यात्राएं

सरकारी खर्चे पर परिधान-पालिटिक्स का प्रपंच

सरकारी खर्चे पर स्व-छवि निर्माण

अच्छे दिनों की याद में

शहीद हो गए कई-कई अच्छे दिन

तब जाकर पता चला

कि आए तो आए आखिर किसके अच्छे दिन?

सरकारी इश्तहारों की तस्वीरों में

दिखाया गया शेर

मगर शेर वह नितांत सरकारी

नितांत सरकारी उस शेर की दहाड़

दिखाई सुनाई नहीं देती है कहीं भी

अच्छे दिनों की बात में

अच्छे दिनों की प्रतिज्ञा का रुदन है

अच्छे दिनों की प्रतिज्ञा के रुदन में

अच्छे दिनों की प्रतिज्ञा छुपी है

और जो प्रतिज्ञा छुपी है इन दिनों में

उसके अच्छे दिन कभी नहीं, कहीं नहीं

अच्छे दिनों का घोटाला है ये तो

गरमागरम तवे पर सिंक रही रोटी

और सिंक रही रोटी के लिए तरस रहे आदमी का

यही है, यही है एक मला-मला-सा तारतम्य यही है

कि यहां और वहां

अच्छे दिनों जैसा कुछ नहीं है

कोई एक शेर की तस्वीर है श्वान जैसी

श्वान में शेर जैसी दहाड़ नहीं है

अच्छे दिनों की बात में।


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