अभिमन्यु
अभिमन्यु
गर्व के ऊपर भी अपना पैर रख गया था अभिमन्यु
सात महारथियों से अकेला लड़ गया था अभिमन्यु
दुःख उसे बस इतना ही रह गया था की रण में,वो
कायरों के हाथों क्यों वीरगति पा गया था अभिमन्यु
एक जयद्रथ के छल से जल गया था अभिमन्यु
श्रीकृष्ण का भांजा,अर्जुन-सुभद्रा का वो लाडला,
युवाओं के लिये जिंदा मिशाल बन गया था अभिमन्यु
एक-एक महारथी से वो 100-100 बार लड़ा था,
छल-कपट के चक्रव्यूह को न जान पाया अभिमन्यु
वो द्वापरयुग था,आज कलयुग है,ये बड़ा छल युग है,
आज भी हर जगह छल से ही मर रहा है अभिमन्यु
इस छल को छल से ही जानना तू सीख ले साखी,
श्रीकृष्ण के सुदर्शन से भी घातक है,ये छलमन्यु
ये बात तू जान ले ओ रे भोले कलियुग के अभिमन्यु