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Vinita Singh Chauhan

Children Stories

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Vinita Singh Chauhan

Children Stories

अब तो कंही रुक जाओ...

अब तो कंही रुक जाओ...

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बात ये नहीं बहुत पुरानी,

आओ सुनायें पेड़ो की कहानी.....


जंगल ,पेड़ कटे तो,

धरती का श्रृंगार उजड़ा।

नीरसता छाई धरती में,

मानो वैधव्य सा हुआ मुखड़ा।


धरती हो गई उदास,

छाया खत्म हुई आसपास।

सूरज के तेवर बदले,

धरती पर वो आग उगले।


सूरज की गरमी को अब कौन सोखे।

शहरीकरण को अब कौन रोके।

पानी, मिट्टी, हवा को मिले धोखे,

अब जंगलो को कटने से कौन रोके।।


बाँध बना रोका नदियों का बहाव,

बढ गया मिट्टी का कटाव।


प्रदुषित हो गई, 

धरती मानवीकृत से।

अशुध्द हुई आबोहवा, 

जो मिली पुरखों व पितृ से।


अब हर मानव झेल रहा है

प्रकृति का कहर।

आनेवाली पीढी को मिल रहा

प्रकृति से जहर।


छिद्र हो गये आकाशीय

ओजोन पर्त में,

जलस्त्रोत खत्म हो गये

धरती के गर्त में।


अब तो कंही रुक जाओ,

समूह बनाकर आगे आओ,

कुछ सफल प्रयास कर,

धरती को प्रदूषण मुक्त कराओ।

अब तो कंही रुक जाओ...


वर्ना लोग पानी के लिये

मजबूर हो जायेंगे.

वर्ना लोग पेड़ो की ठंडी

छाया से दूर हो जायेंगे.

   

अब तो कंही रुक जाओ,

आनेवाली पीढी को कुछ तो दे जाओ,

धरती बचाने के खातिर,

नये नये पौधे उगाओ। 

अब तो कंही रुक जाओ...


वर्ना प्रकृति से यदि होती रही छेड़छाड़।

गाँव ,जंगल,नदियों को उजाड़।

उत्तराखंड सा हश्र होगा,

बाढ, प्रलय तो कंही धसेंगे पहाड।।


अब तो कहीं रुक जाओ...

अब तो कहीं रुक जाओ...

            

   


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