आशियाना
आशियाना
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उड़ता रहूं फ़लक पर
अपने परो के साथ
एक यक़ीन की हस्ती को
साबित करने के लिए,
रोज़ थोड़ा-थोड़ा पेट
की खातिर मरने के लिए,
फिर सोचता हूँ कब तक
ऐसे बैठें-बैठें जीवन चले
वजूद के लिए कोई और
ठिकाना हो,
जहां इस ज़िंदगी को
जमाना हो ,
ठहर जाये ऐसी जगह पर
जहाँ सिर्फ प्यार का
आशियाना हो।