आशीर्वाद
आशीर्वाद
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नया ये ज़माना नए सब हिसाब ,
नए हैं नियम यहाँ नए सब रिवाज़,
पड़ोसी को पड़ोसी की नहीं सुध,
मगर दोस्त हैं बेहिसाब।
कहाँ यहाँ गाँव वाली रौनक,
न यहाँ कच्चे रस्ते न पोखर तालाब,
दिन रात दौड़ती भागती भीड़,
सड़कों पर कभी उफनता कभी रेंगता सैलाब।
हर कोई आतुर पाने को मंज़िल,
न दिखती रौशनी कहीं न दिखता साहिल,
फिर भी सब हैरान परेशान, गुज़ारते,
ज़िन्दगी सड़कों पर कि हो मकान आलीशान।
वो दिन भी क्या दिन थे ,
जब था नहीं पास बहुत कुछ,
फिर भी थे हम कितने खुश,
अपनी देहरी, अपने खेत, कच्चे मकान।
गाँव की चौपाल, बरगद की छाँव तले,
लालटेन की रौशनी में कितने सपने पले,
था सुकून, वक़्त और अपनों का साथ,
माता पिता की छाया और सर पर आशीर्वाद।
